Wednesday, October 3, 2007

जोड़-तोड़

हे हनुमान राम जानकी
रक्षा करो मेरी जान की (1)

पूरी करो मेरी कामना
खुले लाँटरी, करूँ काम ना (2)

भूखे हैं तेरे बन्दे
भूखों को तू ‘बन’ दे (3)

हों न जाए कहीं ये गन्दे
इनको नहीं तू ‘गन’ दे (4)

खुल जाएँ सारे फ़न्दे
ऐसा कोई इन्हें फ़न दे (5)

लग जाए काम धन्दे
इतना इन्हें तू धन दे (6)

अकल से हैं कुछ मन्दे
सूकूं और शान्त मन दे (7)

फ़ौजियों को ऐसा क्यूँ वर दिया
कि खून से रंग गईं वर्दीयाँ (8)

अब न हों गरीबों पे हमले
आओ कसम ये हम लें (9)

लगे जगह जगह वो गमले
जो ख़ुशियाँ दें और ग़म लें (10)

मेहमान हैं हम पल दो पल के
ख़ुश रहें जब तक खुली हैं पलकें (11)

उनकी मस्त आँखों का नशा जब से पी लिया
तब से हमारे दिल को हो गया पीलिया (12)

ये बात समझ सबको ख़ुद आई
कि चारो तरफ़ फ़ैली है ख़ुदाई (13)

जब तक देखा नहीं आईना 
अपनी ख़ामियाँ नज़र आईं ना (14)

एक बार गए तो आए नही मुसा फिर
जीवन है एक तरफ़ा सफ़र समझ ले ऐ मुसाफ़िर (15)

सोचा कभी आप ने कि दिल क्यूँ धड़के?
ये अरमान पूरे करता है सर और धड़ के (16)

थक जाओंगे तुम रो रो के
ज़ानेवाले न जाएँगे तुमसे रोके (17)

इन्सान जोड़ते-जोड़ते चार पाई
अकसर पकड़ लेता है चारपाई (18)

मेरे मन की वेदना
समझे कोई वेद ना (19)

इन्सान हैं दोनो काज़ी या काफ़िर
फ़र्क आखिर किस बात का फिर? (20)

उनके रुख पे कमाल का तिल
रफ़्ता-रफ़्ता बन गया कातिल (21)

जब किस्मत दे दर पे दस्तक
जल्दी करो न गिनो दस तक (22)

पूरी करे जो सब के मन की
हनुमान हैं ऐसे 'मेजिकल मंकी' (23)

प्यास तो बुझती है घर के जल से
पी लो चाहे अनगिनत जाम जलसे दर जलसे (24)

गाड़ी घोड़ा साईकल
सब छुटेंगे साईं कल (25)

नाम किशन कन्हैया का लिया
जब डराने लगा नाग कालिया (26)

टोपी जो उनके सर से सरकी
पोल खुल गई गन्जे सर की (27)

हेंकड़ी न हाँको ताक़त और बल की
शरण में जाओ भगवान के बल्कि (28)

हिंदुस्तान ने हमे क्या कुछ न दिया
गंगा जमुना जैसी पावन नदियाँ (29)

सब के नयन तब ज़रूर हैं छलके
जब देखे नज़ारे कपट और छल के (30)

चाहे हो भारी चाहे हो हल्की
बुद्दिमान वही जिसने समस्या हल की (31)

खुश थी हरी भरी सी मैं थी
काट कूट के मुझे बना दी मैंथी (32)

झेलनी पड़ी हमें बीवी की गाली
मेहदी हसन की ग़ज़ल जब हमने गा ली (33)

चलो ऐसे मिटाएँ झगडे हमारे तुम्हारे
न ही हम जीते और न ही तुम हारे (34)

ताजा मीठे आमो से बना रस
ऐसा है मीठा शहर बनारस (35)

जब दो प्रेमी डूबे हो प्रेम के रस में
बिगाड़ नहीं सकतीं कुछ दुनिया की झूठी रस्में (36)

लक्ष्मी जी आप बहुत कम आती हो
मिले ऐसी बीवी जो बहुत कमाती हो (37)

मेरे बेटे की सूरत खिल आती है
जब नानी उसे खीर खिलाती है (38)

उपर उमड़ता घुमड़ता सावन हो
हम हो तुम हो और एक सुन्दर सा वन हो (39)

कलयुग में कैसा मिला 'सरप्राईज़' है
के अपराधियों के सर 'प्राईज़' है (40)

मैं दूँगा सूरज को हरा
कहता है दिल्ली का कोहरा (41)

पति को गलतफ़हमी है कि वो पत्नी का पार्टनर है
असलियत में तो वो 3 पार्ट गधा, 2 पार्ट उल्लू और एक पार्ट नर है (42)

जिन्होने भी मिलियंस कमाए हैं
मुसीबतों मे नज़र कम आए हैं (43)

नगर-नगर भटकने वाले बंजारे
ठहर किसी एक का बन जा रे (44)

हिंदी है एकमात्र भाषा
ज़िसे करोडों कहते हैं मातृ-भाषा (45)

क्या हाल होता है फलों का सड़ के?
देखना है तो देखिए बंबई की सड़कें (46)

अपना अपना सब का रण है
ज़ीने का यहीं कारण है (47)

गुज़र गया वो ज़माना पुरातन
जब नारी ढकती थी पूरा तन (48)

क्या खाक़ पाया दुनिया ने लड़के
गरीबों ने गँवाएँ हैं अपने लड़के (49)

देस में हावी है देसी पर देसी
यहाँ हर तरफ़ परदेसी परदेसी (50)

सलामत हैं अभी तक पत्थर संगमरमर के
शाहजहाँ मिट गया मुमताज़ के संग मर मर के (51)

बदकिस्मती से मिली ऐसी नाईन
हुलिया हो गया 'एसीनाईन' (52)

मफ़लर और टोपी में छुपा सर दिया
जैसे ही गिरी बर्फ़ और आईं सर्दिया (53)

'बीच' पर हसीनाएँ न होतीं गर मियां
भगवान जाने कैसे गुज़रतीं गर्मियां (54)

अगर मार न खाना हो रोज़ाना
तो मार खाने से पहले रो जाना (55)

भगवान में आस्था जिसने खो दी
उसने अपनी क़ब्र ख़ुद है खोदी (56)

न कभी ईश्वर मिला ना ख़ुदा
हम ख़ुद हैं कश्ती के नाखुदा (57)

जिसने कभी भी दिया ना दान
उसे कहते हैं बच्चा नादान (58)

काम इतना नेक तू कर जा
सर प न रहे कोई क़र्ज़ा  (59)

प्रेम प्यार के किस्से
कहे भी तो किस से? (60)

ऐसा है सूना माथा जिस पे नहीं बिन्दिया
ज्योतिहीन हो जैसे बाती बिन दिया (61)

आधुनिक युग की अद्भुत कला कार है
हम आप ड्राईवर नहीं कलाकार हैं (62)

तेरे मेरे बीच एक अटूट सेतु है
तुझ से मैं और मुझ से तू है (63)

हर तरफ़ मचा हाहाकार है
इसका कारण हाँ हाँ कार है (64)

जिस शोख ने हमे दिखाया नाज़ नखरा
उनका प्रेम कसौटी पे उतरा न खरा (65)

मेरा परिवार हंसी-खुशी खा-पी सके
कहाँ से लाऊँ आटा ऐसा पीस के (66)

हम जब कभी भी जो कहें
वो समझे कि जोक है (67)

कुछ इस तरह अपने होंठ सी सके
कि आज के बाद ये न सिसके (68)

मैं हूँ, मंडप है और तुम्हारी मांग में सिन्दूर है
ऐ प्रिये, कुछ तो समझाओ क्यूँ ये सुहाना 'सीन' दूर है (69)

मत पूछो कि क्यूँ हम नाराज़ हैं
तुम से तो कोई भी छुपा ना राज़ है (70)

और नहीं हकलाएँगे
जीत के हम हक़ लाएँगे (71)

एडिसन के दिमाग में बल्ब ने जब से बीज लिया
तब से आज तक जग-गा रहीं हैं वो बिजलियाँ (72)

न आज कर न कल कर
कभी भी मत नकल कर (73)

जीते हैं हम उन निगाहों की ख़ातिर 
मर गए हम जिन नज़रों के खा तीर (74)

पहचानी जाती है परी शरम से
आदमी पहचाना जाता है परिश्रम से

जान पर जब तक बन आए ना
ईश्वर से नाता कोई बनाए ना

वतन रहित हम हैं वे तन
जिन्हें मिला न मुँहमांगा वेतन

भेद भाव छोड़ के सब को तू सम मान
एक न एक दिन पाएगा तू बहुत सम्मान

बंद कर दिया बाथरुम में गुनगुनाना
क्यूँकि मुझे पानी मिला गुनगुना ना

अब क्या लिखना और क्या सुनाना
जब भी कहा किसी ने सुना ना

अगर प्यार हमें न मिलता ननिहाल
हम और आप आज होते न निहाल

किसी को जमें या न जमें
हम तो लिखेंगे नज़्में

बँध के किसी न किसी कोल्हू
देते हैं सब जीवन को लहू

जब जब भगवान धरती को boon दे
तब तब बरसती है टप-टप बूंदे

जिस खेल में एक दो नही शत शत रंज है
उसे ही हम और आप कहते शतरंज है

जिसके प्यार से हो तुम भी तर मैं भी तर
वह रहता है सदा हमारे ही भीतर

मिली थी मुझे कवियत्री सुनीता जी
जिनसे मैंने कविता सुनी ताजी

हर हफ़्ते जो करता मंगल जाएगा
हनुमान जी का उस पर मन गल जाएगा

बेइंतहा मोहब्बत करता है पुरुष कार से
जैसे नवाज़ा गया हो नोबल पुरुस्कार से

बनाओ उसे अपना जो है बेगाना
नीरस है जीवन जो है बे-गाना

जहाँ है वन
वहीं 'हैवन'

कटेगे बंधन तभी जब हम सच बोलेगे
कटेगी फसल वैसी जैसी हम बो लेगे

न ज़माने की न दुनिया की परवाह की
जब जो अच्छा लगा उस पर वाह की

इतना भी तू किसी को सराह ना,
कि भारी पड़ जाए एक दिन सराहना

अकेला टी-वी बिलकुल बेकार है
जब तक गठबंधन न हो डिश या केबल से
महफ़िल में कलाकार सारे बेकार है
महफ़िल तो रंग लाती है श्रोताओं के बल से

2 comments:

Batangad said...

राहुल जी
कमाल की तुकबंदी दी है। बहुत अच्छी है। लेकिन, लंबी हो गई है। इसे कई किस्तों में देना चाहिए था।

Dev said...

पंक्तियों का सार अत्यंत मनोहर है